(निधि शुक्ला)
कुदरत की अपार शक्ति के इस विराट परिचय ने सम्पूर्ण मानव जाती को थाम लिया है, सबकुछ थम गया।
हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि सम्पूर्ण शक्तिशाली विश्व को एक अदृश्य वायरस रोक सकता हैं ?
कल्पनाजगत में तो मन आज़ाद होता है जहां हम जैसी चाहें कल्पना कर सकते है परन्तु सत्य जगत की यह रहस्यमयी यात्रा प्रत्यक्षदर्शियों को तो स्वीकार होगी किन्तु जब कई सौ वर्षों बाद पीढ़ियां इसे सुनेगी तब उनके लिए यह सब कल्पना जगत जैसा ही होगा क्योकि उस समय तक तो विज्ञान और आधुनिकता एक अलग ही चरम पर होगी।
मानव जाती स्वयं को और अधिक शक्तिशाली समझेगी और स्वयं को ही कर्ता मानेगी।
वेद ग्रंथ व शास्त्रों में जिस अनन्त शक्ति की बात कहीं गई है वह अनन्त शक्ति दृश्य जगत को क्षणभर में हिलाकर रख देती है । उसकी गतिमानता, सन्तुलन, संरक्षण , संस्कार, सहनशीलता जब जवाब दे देती है तब वह अपनी शक्ति दिखाती है वह भी अदृश्य रहकर ।
कुदरत के लिए सबकुछ सम्भव है हां सबकुछ।
वह पलभर में मौसम को बदलकर रख देती है तो किस्मत को भी।
कुदरत कब क्या ,कैसे करेगी ? यह कोई नहीं जान सकता।
मैं उस अनन्त शक्ति की बात कर रही हूँ जो समस्त संसार को चलायमान हैं।
अगर किसी को अपने पर लेशमात्र भी अहंकार हो गया हो इसका सीधा अर्थ है कि वह परमसत्ता से अनभिज्ञ है और बड़ी भारी अज्ञानता में अहंकार पाले बैठा है ।
समस्त विश्व की मानव जाति के लिए यह 2020 का समय इतिहास में दर्ज होने जा रहा है ।
भौतिक, आर्थिक,सामाजिक, तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से यह युग परिवर्तन का समय होगा।
ब्रह्मांड के बनाये नियम जन्म पालन तथा संहारक द्वारा जब शक्ति का दर्शन कराया गया तब समस्त विश्व केवल स्थिर होकर देखता रह गया ।
मानवजाति का "मैँ" पूर्णतः समाप्त होकर अनन्त विराट शक्ति के चिन्तन मे खो गया।
सार्वभौमिक सृष्टि के सिद्धांतों को मनुष्य ने जितना समझा सब धरे रह गए। विराटता की यह अलोकिक शक्ति अपने मूल स्वरूप में तो कभी दिखाई देती ही नही केवल अदृश्य रुप से समस्त दृश्य जगत का संचालन करती है और अपनी सत्ता होने का परिचय समय समय पर कराती है ।
मानव शरीर रुपी यंत्र को वह शक्ति ऐसे संचालित करती है जैसे कठपुतली हो और कठपुतली को स्वयं पर गर्व हो जाता है, किंतु यह गर्वानुभूति क्षणिक ही होती है परमतत्व को अगला दृश्य जो प्रस्तुत करना होता है ।
इस पूरे घटनाक्रम में लगभग हर मानव जाती उस विराट शक्ति से परिचित हो चुकी है अतः अब प्रश्न आता है कि इस वायरस पर विजय कैसे प्राप्त हो? साधारण दृष्टिकोण साधारण बातों पर लागू होता है किंतु अगर हमें विशेष स्थिति से निपटना हो तो विशेष दृष्टिकोण भी लाना होगा।
यं यं चिन्तयेत कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितं
अर्थात हम जिस जिस अभीष्ट वस्तु का चिंतन करते हैं वह प्राप्त होती हैं।
बड़ी ही गूढ़ता से दुर्गासप्तशती के इस श्लोक में पूरा दर्शन समाहित किया गया है । आज समय है उसी दृष्टिकोण को समझने का जो किसी भी धर्म का मूल है वह है कृतज्ञता और दृष्टिकोण....
मानव मन की संरचना जितनी सूक्ष्मता से कार्य करती है उतने ही विराट परिणाम भी देती हैं।
जैसे दो तरह के चिंतन होते है...
समस्या या समाधान, बीमारी या स्वास्थ्य, गरीबी या समृद्धि।
जिसका जैसा दृष्टिकोण व ध्यान होगा वह वैसे ही परिणाम को पाएंगे ।
जो जैसे दृश्य , व शब्द सुनेंगे व कहेंगे वेसे ही प्रत्यक्ष भी उनके जीवन मे घटित होता जाएगा।
भारत सरकार व पूरे विश्व के स्वास्थ्य के प्रति सजगता के बेहतरीन कदमो की अनुशंसा करते हुए हम प्रदेश ,शहरी व ग्रामीण स्तर पर किये जा रहे प्रयासों की भी सराहना करते हैं किंतु अगर इन्ही कदमो में छोटे छोटे सकारात्मक परिवर्तन कर दिए जाएं तो चमत्कारी परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
जैसे
बीमारी से सम्बंधित शब्दो को परिवर्तित कर बेहतरीन स्वास्थ्य से जोड़ा जा सकता है । कितने लोगो की मृत्यु हुई इस पर से ध्यान हटाकर कितने लोग स्वास्थ्य हुए है यह प्रचारित किया जा सकता है ।
आज समय से दृष्टि व विचार परिवर्तन का।
केवल दृष्टि बदलने से सृष्टि स्वतः ही बदल जाएगी।
भारत के साथ सम्पूर्ण विश्व के मंगल की प्रार्थना करते हुए कृतज्ञता फाउंडेशन की ओर से..डाक्टर "निधि शुक्ला"